Sunday, November 17, 2024
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कविता

अज़ब सी कश्मकश है उनके होटों की हँसी देखकर
उन्हें बातें करनी भी है , और करनी भी नहीं …
सुर्ख होते हैं लब उनके , जब पास होता है कोई
उन्हें दिल्लगी करनी भी है , और करनी भी नही..

कि बड़े प्यार से भेजा है तोहफा मुस्कुराने को
थोड़ा अहसास पाने को कुछ भूल जाने को
फ़लसफ़ा ऐसा हुआ कि ज़रा सा बिफ़र जाने की
उन्हें कोशिश करनी भी है , और करनी भी नहीं

आदतें अच्छी नही लगती उन्हें यूँ बात करने की
बिना हाले बयाँ जाने यूँ मुलाकात करने की
हंस कर कह दिया उसने भी ” जरा दूर हो हमसे “
मुझे दोस्ती करनी भी है, और करनी भी नहीं ..


थके है कदम , पर “राहे – मंज़िल” पे रुके नहीं है
लगता है यू ही जागने को कुछ और रातें बाकी है
कोशिशें तो बहुत की हमने भी मक़ाम पाने की
जरा सी आँखें भी जल रही है और नींद भी बाकी है

सिर्फ ख्वाहिशों से मुकम्मल आसमान नही मिलता
लगता है सोचने को कुछ और भी बातें बाकी है
हम तो थक गए, राहें चलती रहीं मंजिल की तलाश में
जिंदगी के समंदर में शायद और भी डुबकियाँ बाकी है

थके है कदम , पर “राहे – मंज़िल” पे रुके नहीं है
लगता है यू ही जागने को कुछ और रातें बाकी है

~ संतोष

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